Sunday 2 July 2017

स्पेशल केस

"रोहिततततत!!!!"
"ओहो क्या हुआ क्यों चिल्ला रही हो?"
"फिर गीला तौलिया बैड पर पड़ा है तुम्हारा।"
"हाँ तो,अभी उठा ही रहा था ।"
"उठा ही रहा था, हाँ ,जैसे रोज ही उठा देते हो। एक तो बारिश के मौसम में वैसे ही कपड़े नही सूखते ऊपर से तुम्हारे नाटक। कहाँ शादी हो गई मेरी । "
"नही उठाता ,तो रोज टोकती ही क्यों हो, खुद ही उठा लिया करो । और लो बताओ एक तौलिए के पीछे हमारी सारी खूबियां फेल?"
"हाँ बड़ी खूबियां है न । स्वाहा । दिमाग खराब कर रखा  है मेरा ।"
बड़बड़ाती सुम्मी कमरे से बाहर निकल गई ।
"दिमाग है भी ?"
रोहित हंसते हुए सीटी बजाता शीशे के आगे खड़ा हो गया बाल बनाने । फिर अलमारी खोल कर दो मिनट सोचता रहा और फिर चिल्लाया ....
"ओ सुम्मी !!!!"
"क्या है ?"
"यार मैंचिग शर्ट निकाल दे।"
"हे भगवान कुछ सिखाया भी है तुम्हारी माँ ने?"
"देख सुम्मी ...अब सुबह सुबह माँ को बीच में मत ला।"
"अच्छा..अच्छा.. ठीक है.. सॉरी । पर मेरे हाथ बेसन में हो रखे है । नाश्ते के लिए तुम्हारे फेवरट पकौड़े बना रही हूँ । मैं नही आ सकती । खुद निकाल लो।"
"निकाल दे न यार।"
"कहा न मैं नही आ सकती। अपने काम खुद करने की आदत डालो। हर काम के लिए मुझे आवाज़ लगाते हो। तंग कर रखा है।"
"अच्छा ठीक है मत आ। मुझे जो समझ आऐगा वो ही पहन लेता हूँ ।" अब रोहित ने बड़बड़ाते हुए शर्ट निकाली और पहन ली । अब टाई ...
"ओ सुम्मी !!!"
"अब क्या है??" सुम्मी झल्ला कर बोली
"कुछ नही । खुद ही कर लूँगा। तुमसे तो कुछ कहना ही बेकार है । सुबह से पता नही कौन से करेले चबा रखे है। ऐ सुनो !! वैसे तुम्हारी डेट्स तो नही आ रही जो चिड़चिड़ ही बंद नही हो रही ।"रोहित शरारत भरे स्वर में बोला
"फालतू बकवास की न तो डबल मिर्च डाल दूँगी पकौड़ो में " सुम्मी और चिड़ गई ।
तभी रोहित तैयार हो कर डाईनिंग पर आ कर बैठ गया।
"लाओ भई गरमागरम पकौड़े। बारिश के मौसम में पकौड़े खाने का मजा ही कुछ और है । "
"हे भगवान!!!" सुम्मी चिल्लाई
रोहित झटके से घबरा कर खड़ा हो गया
"क्या हुआ सुम्मी ?"
"अरे ये क्या वाहियात मैंचिग बनाई है?"
"इसलिए चिल्लाई तुम ?"रोहित गुस्से से बोला
"और क्या। आई कांट बिलीव कोई ऐसा कोम्बिनेशन भी पहन सकता है। पथैटिक। बदलो फटाफट। रूको मैं ही निकाल कर लाती हूँ ।"
"अरे पहले नाश्ता तो दे दे। "
"रूको तो एक मिनट ही तो लगेगा । मैं निकाल रही हूँ तुम फटाफट बदल लेना। फिर नाश्ता लगाती हूँ ।"
कहते हुए सुम्मी शर्ट लेने अंदर चली गई ।
और रोहित बेचारा शर्ट के बटन खोलते हुए सोच रहा है "मैं ही स्पेशल केस हूँ या सब पतियों की ये ही हालत है।"

9 comments:

  1. ज़िंदगी का आइना दिखाती सुंदर अभिव्यक्ति।

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  2. सब एक जैसे ही होते हैं। अच्छी कहानी है। keep it up.

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  3. यह नोक-झोंक ही शायद तड़का या छौंक है जिंदगी को खुशगवार (स्वाद) बनाने का

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  4. बहुत सुन्दर.....
    इस रिश्ते का परम सत्य....

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  5. बहुत सुन्दर.....
    इस रिश्ते का परम सत्य....

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  6. कशमकश भरी आधुनिक ज़िंदगी...बहुत खूबसूरत रचना...

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  7. रोचक लघु कथा।

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