"हैलो सर !सुम्मी बोल रही हूँ।"
"हाँ सुम्मी , बोलो।"
"सर कुछ किताबें चाहिए थी । काॅलेज लाईब्रेरी में भी नही मिली। अगर आप अरेंज कर सकें तो?"
"ओके , तुम नाम लिख कर मैसेज कर दो । मैं देखता हूँ क्या कर सकता हूँ ।"
कह कर रवि ने फोन तो रख दिया पर अजीब सी बेचैनी घेरने लगी उसे। रवि को प्रोफेसर बने तकरीबन दस साल हो चुके । एक से एक खूबसूरत लड़की उसके काॅलेज में आई और गई पर वो कभी भी किसी से इस कदर आकर्षित नही हुआ जैसा वो सुम्मी के लिए महसूस कर रहा था।
सुम्मी का रंग सांवला जरूर था पर वो बहुत खूबसूरत थी पर हमेशा एक उदासी भरी मुस्कान सुम्मी के चेहरे पर रहती । अक्सर क्लास लेते हुए रवि की नज़र सुम्मी के चेहरे पर रूक जाती । उसकी उदासी भरी मुस्कान रवि का दिल अंदर तक चीर देती ।
रवि ने सुम्मी के बारे में पता कराया था। सुम्मी के मम्मी पापा नही थे। एक बड़ा भाई था बस और सुम्मी की शादी भी तय हो चुकी थी बिना उसकी मर्जी पूछे।
वैसे कसूर तो शायद उसके भाई का भी नही था। वो भी बस दो साल ही बड़ा था । जवान बहन की जिम्मेदारी उठाना इतना आसान भी नही जितना लगता है। सो रिश्तेदारों की मदद से लड़का ढूँढ कर सुम्मी की शादी तय कर दी थी उसने।
सुम्मी अपना खाली वक्त काॅलेज लाईब्रेरी में बीताती । चुपचाप किताबों में गुम । रवि को जब भी समय मिलता वो एक चक्कर लाईब्रेरी का जरूर लगा कर आता और अगर सुम्मी दिख जाती तो वो ऐसी जगह बैठता जहां से वो सुम्मी को चुपचाप निहार सके पर सुम्मी को अहसास न हो उसकी मौजूदगी का।
कैमिस्ट्री सुम्मी का फेवरेट सबजैक्ट था सो वो खुद भी नई नई किताबों के लिए रवि को एप्रोच करने लगी थी। धीरे धीरे सुम्मी रवि से खुलती जा रही थी। पूरे हक से उसे कभी भी फोन कर लेती।
"हाँ सुम्मी , बोलो।"
"सर कुछ किताबें चाहिए थी । काॅलेज लाईब्रेरी में भी नही मिली। अगर आप अरेंज कर सकें तो?"
"ओके , तुम नाम लिख कर मैसेज कर दो । मैं देखता हूँ क्या कर सकता हूँ ।"
कह कर रवि ने फोन तो रख दिया पर अजीब सी बेचैनी घेरने लगी उसे। रवि को प्रोफेसर बने तकरीबन दस साल हो चुके । एक से एक खूबसूरत लड़की उसके काॅलेज में आई और गई पर वो कभी भी किसी से इस कदर आकर्षित नही हुआ जैसा वो सुम्मी के लिए महसूस कर रहा था।
सुम्मी का रंग सांवला जरूर था पर वो बहुत खूबसूरत थी पर हमेशा एक उदासी भरी मुस्कान सुम्मी के चेहरे पर रहती । अक्सर क्लास लेते हुए रवि की नज़र सुम्मी के चेहरे पर रूक जाती । उसकी उदासी भरी मुस्कान रवि का दिल अंदर तक चीर देती ।
रवि ने सुम्मी के बारे में पता कराया था। सुम्मी के मम्मी पापा नही थे। एक बड़ा भाई था बस और सुम्मी की शादी भी तय हो चुकी थी बिना उसकी मर्जी पूछे।
वैसे कसूर तो शायद उसके भाई का भी नही था। वो भी बस दो साल ही बड़ा था । जवान बहन की जिम्मेदारी उठाना इतना आसान भी नही जितना लगता है। सो रिश्तेदारों की मदद से लड़का ढूँढ कर सुम्मी की शादी तय कर दी थी उसने।
सुम्मी अपना खाली वक्त काॅलेज लाईब्रेरी में बीताती । चुपचाप किताबों में गुम । रवि को जब भी समय मिलता वो एक चक्कर लाईब्रेरी का जरूर लगा कर आता और अगर सुम्मी दिख जाती तो वो ऐसी जगह बैठता जहां से वो सुम्मी को चुपचाप निहार सके पर सुम्मी को अहसास न हो उसकी मौजूदगी का।
कैमिस्ट्री सुम्मी का फेवरेट सबजैक्ट था सो वो खुद भी नई नई किताबों के लिए रवि को एप्रोच करने लगी थी। धीरे धीरे सुम्मी रवि से खुलती जा रही थी। पूरे हक से उसे कभी भी फोन कर लेती।
"सुम्मी को कहीं दिख तो नही गया मेरी आँखों में उसके लिए आकर्षण । नही-नही ये गलत है सुम्मी बहुत छोटी है मुझसे। और मेरी स्टूडैंट भी। उसको बस किताबों का शौक़ है इसलिए मेरे आगे पीछे घुमती रहती है। उसकी किताबें अरेंज कर दूँ बस। कोई फालतू बात नही फिर ।"
मैसेज बाॅक्स में लिस्ट देख कर रवि ने दो जगह फोन किया और उसके बाद सुम्मी को।
"सुम्मी .."
"यस सर।"
"तुम्हारी बुक्स मिल गईं है वो लड़का एक घंटे तक मुझे दे जाऐगा । तुम किसी को भेज कर मेरे घर से मंगवा लो।"
"जी सर , थैंक्स ।"
"वेलकम ।"
ये कह कर फोन रख तो दिया रवि ने पर बेचैनी बढ़ रही थी । काॅलेज की छुट्टियां शुरू हो चुकी थी और एक हफ्ते से सुम्मी को देखा तक नही था उसने। मन और तन दोनों थकान महसूस करने लगे। रवि आँखें बंद किए सोफे पर अधलेटा सा था कि तभी डोर बेल बजी।
"ओफ्हो भरी दुपहरी में कौन आ मरा। "
खीजते हुए रवि ने डोर खोला। और सामने सुम्मी को खड़ा देख अवाक् रह गया ।
"सुम्मी! !!!"
"जी सर । वो मैं यही पास में आई थी। सोचा बुक्स खुद ही ले जाऊँ ।"
"हम्मम.. आओ अंदर आओ।"
रवि डोर से साईड हटते हुए बोला।
सुम्मी बेझिझक अंदर चली आई। और बहुत ध्यान से घर देखने लगी
"बैठो सुम्मी।"
"सर आप यहाँ अकेले रहते हो क्या ?"
"हाँ ,क्यों ?"
"कमाल है फिर भी घर इतना ऑर्गनाइज्ड।" कहते हुए सुम्मी खिलखिला कर हंस पड़ी।
रवि आश्चर्य से उसे एकटक निहारता रह गया। आज सुम्मी की हंसी अलग थी । उसकी खनक अलग थी। आज वो हंसी दिल से आ रही थी । बनावट की नही थी।
"बैठो न सुम्मी ।"
"जी सर ।"
"काॅफी पिओगी? अच्छी बनाता हूँ।"
"सर आप बैठो , मैं बना लाती हूँ ।"
"न , मैं बना लाता हूँ । वैसे भी तुम बहुत थकी लग रही हो। आँखें भी सूजी सी हैं । कुछ हुआ है क्या ?"
"नही सर कोई खास बात नही , बस हफ्ते भर से ठीक से नींद नही आई । "
सुम्मी ने जिस तरीके से रवि को देखते हुए ये शब्द कहे। रवि एक पल को कम्पलीटली ऑफ बैंलस हो गया। और बिना कुछ बोले किचन में चला गया। आज उसे सुम्मी की आँखों में अपने लिए प्यार साफ दिख गया था । रवि ख्यालों में गुम काॅफी बीट करने लगा। तभी उसका फोन बजा ।
"हैलो माँ कैसी हो?"
"ठीक हूँ । तू कैसा है।"
"मैं भी ठीक हूँ ।"
"अच्छा सुन । वो पापा के दोस्त कपूर अंकल है न उनकी बेटी शीना याद है तुझे।"
"हाँ याद है माँ क्यों क्या हुआ?"
"कुछ नही । बस तेरा रिश्ता तय कर दिया है उससे ।"
"मुझसे पूछना भी जरूरी नही समझा माँ ?"
"अरे कईं साल हो गए तुझसे तो पूछते। ठीक से जवाब ही कहाँ देता है तू। बस अब बहुत हो गई तेरी मनमानी । अरे पैंतीस साल को होने जा रहा है और क्या पचास में शादी करेगा ।"
"अच्छा माँ अभी मैं जल्दी में हूँ । रात को बात करता हूँ ।"
यही कह कर रवि ने फोन रख दिया । सुम्मी उसके दिल दिमाग पर छाई थी।
"क्या कहूँ सुम्मी को और कैसे। सही नही लग रहा ये जो सुम्मी और मेरे बीच....। पर अभी सुम्मी इंतज़ार कर रही होगी। काॅफी ले कर बाहर तो चलूं।"
रवि काॅफी मग हाथ में लिए बाहर आया तो सुम्मी सोफे पर ही सो चुकी थी। चेहरे पर गज़ब का सुकून था । जैसे अपने घर आई हो बहुत वक्त बाद और निश्चिंत हो नींद आ गई हो ।
रवि उसके पास ही बैठ कर उसे निहारता रहा। उसकी मासूमियत और खूबसूरती दोनों उसके दिल में तूफान मचा रही थी । तभी सुम्मी ने करवट ली तो उसके पैर की पायल खनक उठी।
रवि ने पहले भी नोटिस किया था कि सुम्मी हमेशा पायल पहने रखती है। और आज इतनी पास से उसके पैर में पड़ी पायल उसे यूँ लग रही थी जैसे उसका दिल उसी में बंध गया हो।
मैसेज बाॅक्स में लिस्ट देख कर रवि ने दो जगह फोन किया और उसके बाद सुम्मी को।
"सुम्मी .."
"यस सर।"
"तुम्हारी बुक्स मिल गईं है वो लड़का एक घंटे तक मुझे दे जाऐगा । तुम किसी को भेज कर मेरे घर से मंगवा लो।"
"जी सर , थैंक्स ।"
"वेलकम ।"
ये कह कर फोन रख तो दिया रवि ने पर बेचैनी बढ़ रही थी । काॅलेज की छुट्टियां शुरू हो चुकी थी और एक हफ्ते से सुम्मी को देखा तक नही था उसने। मन और तन दोनों थकान महसूस करने लगे। रवि आँखें बंद किए सोफे पर अधलेटा सा था कि तभी डोर बेल बजी।
"ओफ्हो भरी दुपहरी में कौन आ मरा। "
खीजते हुए रवि ने डोर खोला। और सामने सुम्मी को खड़ा देख अवाक् रह गया ।
"सुम्मी! !!!"
"जी सर । वो मैं यही पास में आई थी। सोचा बुक्स खुद ही ले जाऊँ ।"
"हम्मम.. आओ अंदर आओ।"
रवि डोर से साईड हटते हुए बोला।
सुम्मी बेझिझक अंदर चली आई। और बहुत ध्यान से घर देखने लगी
"बैठो सुम्मी।"
"सर आप यहाँ अकेले रहते हो क्या ?"
"हाँ ,क्यों ?"
"कमाल है फिर भी घर इतना ऑर्गनाइज्ड।" कहते हुए सुम्मी खिलखिला कर हंस पड़ी।
रवि आश्चर्य से उसे एकटक निहारता रह गया। आज सुम्मी की हंसी अलग थी । उसकी खनक अलग थी। आज वो हंसी दिल से आ रही थी । बनावट की नही थी।
"बैठो न सुम्मी ।"
"जी सर ।"
"काॅफी पिओगी? अच्छी बनाता हूँ।"
"सर आप बैठो , मैं बना लाती हूँ ।"
"न , मैं बना लाता हूँ । वैसे भी तुम बहुत थकी लग रही हो। आँखें भी सूजी सी हैं । कुछ हुआ है क्या ?"
"नही सर कोई खास बात नही , बस हफ्ते भर से ठीक से नींद नही आई । "
सुम्मी ने जिस तरीके से रवि को देखते हुए ये शब्द कहे। रवि एक पल को कम्पलीटली ऑफ बैंलस हो गया। और बिना कुछ बोले किचन में चला गया। आज उसे सुम्मी की आँखों में अपने लिए प्यार साफ दिख गया था । रवि ख्यालों में गुम काॅफी बीट करने लगा। तभी उसका फोन बजा ।
"हैलो माँ कैसी हो?"
"ठीक हूँ । तू कैसा है।"
"मैं भी ठीक हूँ ।"
"अच्छा सुन । वो पापा के दोस्त कपूर अंकल है न उनकी बेटी शीना याद है तुझे।"
"हाँ याद है माँ क्यों क्या हुआ?"
"कुछ नही । बस तेरा रिश्ता तय कर दिया है उससे ।"
"मुझसे पूछना भी जरूरी नही समझा माँ ?"
"अरे कईं साल हो गए तुझसे तो पूछते। ठीक से जवाब ही कहाँ देता है तू। बस अब बहुत हो गई तेरी मनमानी । अरे पैंतीस साल को होने जा रहा है और क्या पचास में शादी करेगा ।"
"अच्छा माँ अभी मैं जल्दी में हूँ । रात को बात करता हूँ ।"
यही कह कर रवि ने फोन रख दिया । सुम्मी उसके दिल दिमाग पर छाई थी।
"क्या कहूँ सुम्मी को और कैसे। सही नही लग रहा ये जो सुम्मी और मेरे बीच....। पर अभी सुम्मी इंतज़ार कर रही होगी। काॅफी ले कर बाहर तो चलूं।"
रवि काॅफी मग हाथ में लिए बाहर आया तो सुम्मी सोफे पर ही सो चुकी थी। चेहरे पर गज़ब का सुकून था । जैसे अपने घर आई हो बहुत वक्त बाद और निश्चिंत हो नींद आ गई हो ।
रवि उसके पास ही बैठ कर उसे निहारता रहा। उसकी मासूमियत और खूबसूरती दोनों उसके दिल में तूफान मचा रही थी । तभी सुम्मी ने करवट ली तो उसके पैर की पायल खनक उठी।
रवि ने पहले भी नोटिस किया था कि सुम्मी हमेशा पायल पहने रखती है। और आज इतनी पास से उसके पैर में पड़ी पायल उसे यूँ लग रही थी जैसे उसका दिल उसी में बंध गया हो।
उसे देखते देखते घंटा यूँ ही गुज़र गया तभी डोर बेल बजी। सुम्मी की भी नींद खुल गई । आँख खुलते ही उसे अहसास हो गया कि वो कहां है ।
"साॅरी सर। पता नही कैसे नींद लग गई ।"
"इट्स ओके सुम्मी । बेल बजी है देख कर आता हूँ ।"
सुम्मी भी खड़े हो कर अपना अस्त व्यस्त दुपट्टा संभालने लगी।
"लो सुम्मी तुम्हारी बुक्स आ गई । पर हाँ तुम्हारी काॅफी रह गई । दुसरी बना के लाता हूँ ।"
"नही सर बस । पहले ही बहुत देर हो चुकी है। थैंक्यू सो मच फाॅर एवरी थिंग।"
कह कर सुम्मी तेजी से बाहर निकल गई ।
रवि के चेहरे पर तनाव, उलझन ,उदासी सब एक साथ उभर आए। सही गलत का मापदंड । समाज के नियम सब उसके दिल के टुकड़े कर रहे थे। हाथों में सिर थामे वो वहीं सोफे पर बैठा रहा।
सुम्मी को गए अभी पंद्रह मिनट ही हुए थे कि उसका काॅल आ गया।
"हाँ बोलो सुम्मी?"
"सर मेरी एक पायल कहीं गिर गई है। देखिए न प्लीज़ । कहीं वहीं सोफे के पास तो नही गिर गई जहां सोई हुई थी।"
"नही सुम्मी । मैं वहीं बैठा हूँ । यहां तो कुछ भी नही है। शायद रास्ते में कहीं गिर गई होगी ।"
"जी सर ।" सुम्मी का उदास सा स्वर आया और फोन कट गया।
मुस्कुराते हुए रवि ने जेब से सुम्मी की पायल निकाली। जब सुम्मी गहरी नींद सो रही थी रवि ने धीरे से एक पायल उसके पैर से निकाल ली थी। उसे गाल से छुआए बहुत देर रवि शरारती सी मुस्कान बिखेरता रहा। उम्र कोई भी हो। प्यार शरारत सीखा ही देता है।
"साॅरी सर। पता नही कैसे नींद लग गई ।"
"इट्स ओके सुम्मी । बेल बजी है देख कर आता हूँ ।"
सुम्मी भी खड़े हो कर अपना अस्त व्यस्त दुपट्टा संभालने लगी।
"लो सुम्मी तुम्हारी बुक्स आ गई । पर हाँ तुम्हारी काॅफी रह गई । दुसरी बना के लाता हूँ ।"
"नही सर बस । पहले ही बहुत देर हो चुकी है। थैंक्यू सो मच फाॅर एवरी थिंग।"
कह कर सुम्मी तेजी से बाहर निकल गई ।
रवि के चेहरे पर तनाव, उलझन ,उदासी सब एक साथ उभर आए। सही गलत का मापदंड । समाज के नियम सब उसके दिल के टुकड़े कर रहे थे। हाथों में सिर थामे वो वहीं सोफे पर बैठा रहा।
सुम्मी को गए अभी पंद्रह मिनट ही हुए थे कि उसका काॅल आ गया।
"हाँ बोलो सुम्मी?"
"सर मेरी एक पायल कहीं गिर गई है। देखिए न प्लीज़ । कहीं वहीं सोफे के पास तो नही गिर गई जहां सोई हुई थी।"
"नही सुम्मी । मैं वहीं बैठा हूँ । यहां तो कुछ भी नही है। शायद रास्ते में कहीं गिर गई होगी ।"
"जी सर ।" सुम्मी का उदास सा स्वर आया और फोन कट गया।
मुस्कुराते हुए रवि ने जेब से सुम्मी की पायल निकाली। जब सुम्मी गहरी नींद सो रही थी रवि ने धीरे से एक पायल उसके पैर से निकाल ली थी। उसे गाल से छुआए बहुत देर रवि शरारती सी मुस्कान बिखेरता रहा। उम्र कोई भी हो। प्यार शरारत सीखा ही देता है।
****************************** **********
"सर आप शादी कर रहे हो?" सुम्मी की बड़ी बड़ी आँखों में आँसू भरे थे।
"हाँ सुम्मी । शादी तो करनी ही है। पैंतीस साल का हो गया हूँ फिर।"
"उससे क्या फर्क पड़ता है सर?"
"सुम्मी मुझे पता है तुम्हारे मन मे क्या है।" शांत स्वर में रवि ने कहा।
"फिर भी ??" सुम्मी बहुत हर्ट थी
"हाँ फिर भी। सुम्मी पंद्रह साल छोटी हो तुम मुझसे ।"
"तो ??"
"तो कुछ नही सुम्मी । समाज ,कायदा, परिवार सब देखना चाहिए । ये गुरु शिष्य की मर्यादा नही।"
"सर ये आदर्शवादी कहानियाँ आप अपने पास रखिए । सच कुछ और है । आप डरपोक है ।"
गुस्से से बिफरती रोती सुम्मी तेजी से बाहर निकल गई ।
और कसी मुठ्ठी में बंद पायल हथेली में नही रवि के दिल में ज़ख्म कर रही थी।
"हाँ सुम्मी । शादी तो करनी ही है। पैंतीस साल का हो गया हूँ फिर।"
"उससे क्या फर्क पड़ता है सर?"
"सुम्मी मुझे पता है तुम्हारे मन मे क्या है।" शांत स्वर में रवि ने कहा।
"फिर भी ??" सुम्मी बहुत हर्ट थी
"हाँ फिर भी। सुम्मी पंद्रह साल छोटी हो तुम मुझसे ।"
"तो ??"
"तो कुछ नही सुम्मी । समाज ,कायदा, परिवार सब देखना चाहिए । ये गुरु शिष्य की मर्यादा नही।"
"सर ये आदर्शवादी कहानियाँ आप अपने पास रखिए । सच कुछ और है । आप डरपोक है ।"
गुस्से से बिफरती रोती सुम्मी तेजी से बाहर निकल गई ।
और कसी मुठ्ठी में बंद पायल हथेली में नही रवि के दिल में ज़ख्म कर रही थी।
****************************** *******
बीस साल बीत चुके उस पल को..
रवि के बड़े-बड़े बच्चे हैं और सुम्मी के भी।
उस दिन के बाद उनका सामना कभी नही हुआ । रवि ने पहले ही काॅलेज छोड़ दिया था । और वो उसका आखिरी दिन था काॅलेज में जब सुम्मी गुस्से मे उसके पास आई थी।
पर आज भी रवि की जेब में वो पायल हमेशा रहती है जो उसने अपनी पत्नी के लाख ऐतराज़ के बाद भी कभी खुद से अलग नही की।
और सुम्मी ने भी उम्र भर बस एक ही पैर में पायल पहनी। सबके लगातार टोकने के बाद भी । अपना खाली पैर उसे उन उंगुलियों का अहसास कराता रहता जो धीरे से उसके पैर से पायल उतार रही थी और वो सब जानते हुए भी सोने का बहाना किए रही।
रवि के बड़े-बड़े बच्चे हैं और सुम्मी के भी।
उस दिन के बाद उनका सामना कभी नही हुआ । रवि ने पहले ही काॅलेज छोड़ दिया था । और वो उसका आखिरी दिन था काॅलेज में जब सुम्मी गुस्से मे उसके पास आई थी।
पर आज भी रवि की जेब में वो पायल हमेशा रहती है जो उसने अपनी पत्नी के लाख ऐतराज़ के बाद भी कभी खुद से अलग नही की।
और सुम्मी ने भी उम्र भर बस एक ही पैर में पायल पहनी। सबके लगातार टोकने के बाद भी । अपना खाली पैर उसे उन उंगुलियों का अहसास कराता रहता जो धीरे से उसके पैर से पायल उतार रही थी और वो सब जानते हुए भी सोने का बहाना किए रही।
......कुछ प्रेम कहानियाँ अधूरी जरूर रह जाती हैं पर मरती कभी नही .....
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