Saturday 16 September 2017

पर ऐसा होता नही न दोस्त ...


ये वक्त बहुत बुरा है
इसे गुज़र जाना चाहिए ...
वो लोग अच्छे नही है
उन्हें भूल जाना चाहिए ...

ऐसा सोचते हुए वो
अक्सर रात को
सिरहाने के पास करीने से बिछी चादर पर कुछ शब्द अपनी उंगुली से बहुत सफाई से लिखती

एक बेहद गहरी उदासी भरी साँस ले कर
अपनी हथेली को बहुत गहरे तक चादर पर दबा कर वो झटके से गिरा देती उन शब्दों को बैड से नीचे
महसूस करने लगती एक अनकहा सा सुकून जैसे ज़हन पे रेगती चींटीयों को झटक दिया हो कहीं दूर ..
और अब बेचैनी कुछ कम हो जाऐगी और नींद आ जाऐगी।

वो सोने ही लगी थे कि अतीत से निकल कर कुछ मकड़ियां सरकने लगती है अंदर कहीं मन के तहखाने में । बुनने लगती है बहुत तेज़ी से जाला नींद को उसमें जकड़ लेने का।
वो तड़प कर एक झटके से करवट लेती जैसे तयखाने में सरकती मकडियों का बैलंस बिगड़ जाऐगा ...जिससे बंद हो जाएगा उनका जाला बुनना।

वो सोना चाहती है पर सो नही पाती

उसने बस इतना कहा था उससे एक बार
"हो सके तो अपने ज़हन की बाँहें खुली रखना कि किसी रोज़ जब मेरे सुकून का मन घबराऐगा तो चली आऊंगी तुम्हारी रूह के सीने पर सिर रखने।
तुम अपने अहसास की उंगुलियाँ से मेरे दर्द के गेसुं  संवार  देना और मैं रख लुंगी वो अनकहे बोल तुम्हारे सहेज के उम्र के आड़े वक्त के लिए ।"

पर वो प्रेम रेत के टीलों पर हवा से बनी आकृतियों सा था जो पल पल अपना स्वरूप बदलता रहा।
वो रेत के टीलों से नीचे फिसलने लगती है और उसे धीरे-धीरे नींद भी आ ही जाती है।

जिंदगी किसी एक के साथ खत्म हो सकती तो ???

पर ऐसा होता नही न दोस्त ...

Tuesday 1 August 2017

काश .....उसे रोक लेता



"जा रही हूँ।"
"हम्मम..."
"सुजल मैं सच में जा रही हूँ ।"
"हाँ , तो जाओ न । बार बार क्या सुना रही हो।"
"रोकोगे नही?"
"नही..जाने का फैसला तुम्हारा है । जो अच्छा लगे वो करो।"
"तुम्हें ज़रा शर्मिन्दगी नही जो तुमने किया?"
"नही ,बिल्कुल नही, इतनी गालियां खा के तुम्हारी तो अब ज़रा भी नही।"
"हार्ट अटैक आया था पापा को। तुमने फोन तक नही उठाया।"
"मुझे सपने नही आ रहे थे कि इसलिए फोन कर रही हो जरूरी मीटिंग में था, मैं खुद बहुत स्टैर्स में था।"
"पर तुम्हें पता था, पापा बहुत ज्यादा बीमार हैं और मैं बहुत डरी हुई हूँ । तुम्हें तीन दिन तक याद नही आया कि मेरी सुध लो।"
"मैं बता चुका हूँ मुझे नही पता था ये हुआ । जब हम आखिरी बार मिले तुम छोटी सी बात पर बिगड़ गई थी। मुझे लगा अभी और खींचनी होगी वहीं बात। और मैं आलरेडी बहुत प्रेशर मे था मेरे कैरियर का सवाल था सो तुम्हारा फोन नही उठाया और इस डर से मिलाया भी नही कि फिर काम पर फोकस नही कर पाऊंगा।"
"तुम झूठे हो , तुमने कहा था हर मुश्किल मे मेरा साथ दोगे । फिर जरूरत में पुकारा तो आए क्यों नही ? तुमने धोखा दिया मुझे । " सुम्मी रोते बिफरते बोली
"मुझे अंदाजा नही था इतना सब कुछ हो गया । तुम भी तो बता सकती थी।"
"मुझे फोन करना चाहिए था ?????"  लगभग चीखते हुए बोली सुम्मी "तुम्हारा मन कैसे मान गया मुझे इतने बुरे हालातों से अकेले जुझने को छोड़ने को??"
"मैं अपना जवाब दे चुका हूँ । बार बार वो ही बात कर के क्या होगा । तुम जाने की सोच चुकी हो तो जाओ । रूकी क्यों हो अब तक?"
"तुम रह लोगे मेरे बिना सुजल ?"  सुबकते हुए सुम्मी ने पूछा। हिचकियां बंध चुकी थी उसकी।
"तुम्हें इससे क्या कि मुझ पर क्या बीती । तुम ये कभी मत सोचना। कभी मुड़ कर भी नही देखना। कभी मत आना।"सुजल का गला भर आया कहते कहते।
"ठीक है सुजल ये ही सही ।" और सुम्मी चली गई ।
सुजल दूर तक उसे जाते देखता रहा और फफक फफक के रोते हुआ बुदबुदाया " मत जा, सुम्मी मत जा ,मर जाऊंगा यार ।"
.................................................

"सर आपने इन्हें जानते थे?" सुजल की कुलीग ने सुजल की आँखों में आँसू देख कर पूछा । टेबल पर अखबार के पन्ने फड़फड़ा रहे थे। हैडलाइन थी ' प्रख्यात अभिनेत्री सुमन की कार एक्सीडैंट मे मौत।'
अतीत से वर्तमान में लौट आया सुजल " हाँ कभी बहुत साल पहले मिला था।"
"सर सुना है स्पिलट पर्सेन्लिटी थी। वैसे तो बहुत कामयाब थी पर इसका मानसिक संतुलन ठीक नही था। बहुत बार बहुत वियर्ड बीहेव करती थी। इसके पुराने दोस्त कहते है किसी को बहुत प्यार करती थी। किसी गलतफहमी के चलते उसे छोड़ जल्दबाजी में किसी और से शादी कर ली। वो शादी चली नही और चलती कैसे .. प्यार तो कोई और था। और कौन पति बीवी की ऐसी बेरूखी बर्दाश्त करता है सर। पारिवारिक कलह के चलते अलग हो गई उससे भी। काफी डिप्रेशन मे थी कुछ सालों से। मुझे तो लगता है एक्सीडैंट नही जानबूझकर टक्कर दे मारी होगी। आत्महत्या लग रही है मुझे तो।"
"बस करेगा तू ।" सुजल एकदम आप से बाहर हो चिल्लाया
रवि सन्न रह गया "क्या हुआ सर??"
"कुछ नही बहुत सुन ली प्रेमकथा अब जा कुछ काम कर ले।"
"जी सर।"  कह कर रवि केबिन से बाहर चला गया।
सुजल आँसुओं से तर चेहरा लिए टेबल पर सिर पटकने लगा "सुम्मी काश तुझे रोक लिया होता यार। हम दोनों का अहम् रिश्ता ... जिंदगी सब खा गया। तू तो मर के छूट गई , मेरी जिम्मेदारियाँ बहुत है मैं मर भी नही सकता । मैं अपनी लाश का बोझ कैसे उठाऊंगा सुम्मी?? काश तुझे तब रोक लेता।"
फूट फूट के रोने की आवाज बाहर तक सारा आॅफिस हैरानी से सुन रहा था।

Wednesday 19 July 2017

प्रेम की रीढ़


"सुनो! तुम छोड़ तो नही दोगे मुझे ।"
"कभी ऐसा सोचना भी मत। छोड़ने के लिए नही पकड़ा है हाथ। लाख धक्के दे कर भी कहोगी न कि चले जाओ जिंदगी से तब भी नही जाऊंगा।मरते दम तक नही।"
"सुनो! मुझे इतने प्यार की आदत नही । सिर्फ़ रिश्तों में इस्तेमाल होने की आदत है । मेरी जुबान अक्सर तल्ख हो जाती है मेरे अतीत के ज़ख्मों से ।"
"पर मेरी नही होती कभी । मुझे बस प्यार बांटना आता है। न तल्ख होना आता है न गुस्सा करना।जान भरोसा तो कर के देख एक बार मेरे प्यार पर । मुझे एक मौका तो दे न । तेरे सारे ज़ख्म अपने प्यार से भर दुंगा। जीवन की सब कड़वाहट धुल जाऐगी।"

और शादी हो गई
*********

"फिर क्या हुआ था ताई? कहाँ गए वो ?तुम तो अकेली रहती हो ?"
"हम्मम.."
"बताओ न ताई कहाँ गए आपके वो?"
"वो चले गए।"
"पर क्यों ?कहाँ ?"
"छोड़ कर , हमेशा के लिए ।"
"हैं!!!!! ऐसे कैसे ?? वो तो कहते थे न आपसे , आपका हाथ कभी नही छोड़ेंगे?"
*********

"हज़ार बार तुझसे कहा है मुझे तेरी तल्खी बर्दाश्त नही।"
मुझसे तमीज़ से बात किया कर।"
"तुम चाहे कोई भी गलती करो। मुझे शालीनता का पाठ याद रखना होगा।"
"तेरे लिए इतना ही बहुत होना चाहिए , मैं तुझे बहुत प्यार करता हूँ ।"
"प्यार केयर से महसूस होता है ,जुमले रटने से नही।"
"तो क्या चाहती है तू?"
"एक हफ्ते के लिए एक दुसरे से दूर रहते है ताकि एक दुसरे की कद्र पहचान सके।"
"हट साली , रात दिन की किच - किच लगा रखी है ।
मर तू अकेली।हमेशा के लिए ही जा रहा हूँ ।"
हैरानी से आँखें फाड़े सुम्मी .... सुजल को जाते देखती रही थी ....
*********

"बोलो न ताई क्या हुआ था??"
"ओफ्हो!! तंग कर दिया है । अरी मतिमारी । तेरी कच्ची उम्र है तू नही समझती। प्रेम में  वादे किए जाते है निभाए नही जाते। भ्रम प्रेम की रीढ़ होता है। सब प्रेम भ्रम पर ही टिके होते है। रीढ़ के टूटते ही सब धराशायी ।"

Saturday 15 July 2017

पायल



"हैलो सर !सुम्मी बोल रही हूँ।"
"हाँ सुम्मी , बोलो।"
"सर कुछ किताबें चाहिए थी । काॅलेज लाईब्रेरी में भी नही मिली। अगर आप अरेंज कर सकें तो?"
"ओके , तुम नाम लिख कर मैसेज कर दो । मैं देखता हूँ क्या कर सकता हूँ ।"
कह कर रवि ने फोन तो रख दिया पर अजीब सी बेचैनी घेरने लगी उसे। रवि को प्रोफेसर बने तकरीबन दस साल हो चुके । एक से एक खूबसूरत लड़की उसके काॅलेज में आई और गई पर वो कभी भी किसी से इस कदर आकर्षित नही हुआ जैसा वो सुम्मी के लिए महसूस कर रहा था।
सुम्मी का रंग सांवला जरूर था पर वो बहुत खूबसूरत थी पर हमेशा एक उदासी भरी मुस्कान सुम्मी के चेहरे पर रहती । अक्सर क्लास लेते हुए रवि की नज़र सुम्मी के चेहरे पर रूक जाती । उसकी उदासी भरी मुस्कान रवि का दिल अंदर तक चीर देती ।
रवि ने सुम्मी के बारे में पता कराया था। सुम्मी के मम्मी पापा नही थे। एक बड़ा भाई था बस और सुम्मी की शादी भी तय हो चुकी थी बिना उसकी मर्जी पूछे।
वैसे कसूर तो शायद उसके भाई का भी नही था। वो भी बस दो साल ही बड़ा था । जवान बहन की जिम्मेदारी उठाना इतना आसान भी नही जितना लगता है। सो रिश्तेदारों की मदद से लड़का ढूँढ कर सुम्मी की शादी तय कर दी थी उसने।
सुम्मी अपना खाली वक्त काॅलेज लाईब्रेरी में बीताती । चुपचाप किताबों में गुम । रवि को जब भी समय मिलता वो एक चक्कर लाईब्रेरी का जरूर लगा कर आता और अगर सुम्मी दिख जाती तो वो ऐसी जगह बैठता जहां से वो सुम्मी को चुपचाप निहार सके पर सुम्मी को अहसास न हो उसकी मौजूदगी का।
कैमिस्ट्री सुम्मी का फेवरेट सबजैक्ट था सो वो खुद भी नई नई किताबों के लिए रवि को एप्रोच करने लगी थी। धीरे धीरे सुम्मी रवि से खुलती जा रही थी। पूरे हक से उसे कभी भी फोन कर लेती।
"सुम्मी को कहीं दिख तो नही गया मेरी आँखों में उसके लिए आकर्षण । नही-नही ये गलत है सुम्मी बहुत छोटी है मुझसे। और मेरी स्टूडैंट भी। उसको बस किताबों का शौक़ है इसलिए मेरे आगे पीछे घुमती रहती है। उसकी किताबें अरेंज कर दूँ बस। कोई फालतू बात नही फिर ।"
मैसेज बाॅक्स में लिस्ट देख कर रवि ने दो जगह फोन किया और उसके बाद सुम्मी को।
"सुम्मी .."
"यस सर।"
"तुम्हारी बुक्स मिल गईं है वो लड़का एक घंटे तक मुझे दे जाऐगा । तुम किसी को भेज कर मेरे घर से मंगवा लो।"
"जी सर , थैंक्स ।"
"वेलकम ।"
ये कह कर फोन रख तो दिया रवि ने पर बेचैनी बढ़ रही थी । काॅलेज की छुट्टियां शुरू हो चुकी थी और एक हफ्ते से सुम्मी को देखा तक नही था उसने। मन और तन दोनों थकान महसूस करने लगे। रवि आँखें बंद किए सोफे पर अधलेटा सा था कि तभी डोर बेल बजी।
"ओफ्हो भरी दुपहरी में कौन आ मरा। "
खीजते हुए रवि ने डोर खोला। और सामने सुम्मी को खड़ा देख अवाक् रह गया ।
"सुम्मी! !!!"
"जी सर । वो मैं यही पास में आई थी। सोचा बुक्स खुद ही ले जाऊँ ।"
"हम्मम.. आओ अंदर आओ।"
रवि डोर से साईड हटते हुए बोला।
सुम्मी बेझिझक अंदर चली आई। और बहुत ध्यान से घर देखने लगी
"बैठो सुम्मी।"
"सर आप यहाँ अकेले रहते हो क्या ?"
"हाँ ,क्यों ?"
"कमाल है फिर भी घर इतना ऑर्गनाइज्ड।"  कहते हुए सुम्मी खिलखिला कर हंस पड़ी।
रवि आश्चर्य से उसे एकटक निहारता रह गया। आज सुम्मी की हंसी अलग थी । उसकी खनक अलग थी। आज वो हंसी दिल से आ रही थी । बनावट की नही थी।
"बैठो न सुम्मी ।"
"जी सर ।"
"काॅफी पिओगी?  अच्छी बनाता हूँ।"
"सर आप बैठो , मैं बना लाती हूँ ।"
"न , मैं बना लाता हूँ । वैसे भी तुम बहुत थकी लग रही हो। आँखें भी सूजी सी हैं । कुछ हुआ है क्या ?"
"नही सर कोई खास बात नही , बस हफ्ते भर से ठीक से नींद नही आई । "
सुम्मी ने जिस तरीके से रवि को देखते हुए ये शब्द कहे। रवि एक पल को कम्पलीटली ऑफ बैंलस हो गया। और बिना कुछ बोले किचन में चला गया। आज उसे सुम्मी की आँखों में अपने लिए प्यार साफ दिख गया था । रवि ख्यालों में गुम काॅफी बीट करने लगा। तभी उसका फोन बजा ।
"हैलो माँ कैसी हो?"
"ठीक हूँ । तू कैसा है।"
"मैं भी ठीक हूँ ।"
"अच्छा सुन । वो पापा के दोस्त कपूर अंकल है न उनकी बेटी शीना याद है तुझे।"
"हाँ याद है माँ क्यों क्या हुआ?"
"कुछ नही । बस तेरा रिश्ता तय कर दिया है उससे ।"
"मुझसे पूछना भी जरूरी नही समझा माँ ?"
"अरे कईं साल हो गए तुझसे तो पूछते। ठीक से जवाब ही कहाँ देता है तू। बस अब बहुत हो गई तेरी मनमानी । अरे  पैंतीस साल को होने जा रहा है और क्या पचास में शादी करेगा ।"
"अच्छा माँ अभी मैं जल्दी में हूँ । रात को बात करता हूँ ।"
यही कह कर रवि ने फोन रख दिया । सुम्मी उसके दिल दिमाग पर छाई थी।
"क्या कहूँ सुम्मी को और कैसे। सही नही लग रहा ये जो सुम्मी और मेरे बीच....। पर अभी सुम्मी इंतज़ार कर रही होगी। काॅफी ले कर बाहर तो चलूं।"
रवि काॅफी मग हाथ में लिए बाहर आया तो सुम्मी सोफे पर ही सो चुकी थी। चेहरे पर गज़ब का सुकून था । जैसे अपने घर आई हो बहुत वक्त बाद और निश्चिंत हो नींद आ गई हो ।
रवि उसके पास ही बैठ कर उसे निहारता रहा। उसकी मासूमियत और खूबसूरती दोनों उसके दिल में तूफान मचा रही थी । तभी सुम्मी ने करवट ली तो उसके पैर की पायल खनक उठी।
रवि ने पहले भी नोटिस किया था कि सुम्मी हमेशा पायल पहने रखती है। और आज इतनी पास से उसके पैर में पड़ी पायल उसे यूँ लग रही थी जैसे उसका दिल उसी में बंध गया हो।
उसे देखते देखते घंटा यूँ ही गुज़र गया तभी डोर बेल बजी। सुम्मी की भी नींद खुल गई । आँख खुलते ही उसे अहसास हो गया कि वो कहां है ।
"साॅरी सर। पता नही कैसे नींद लग गई ।"
"इट्स ओके सुम्मी । बेल बजी है देख कर आता हूँ ।"
सुम्मी भी खड़े हो कर अपना अस्त व्यस्त दुपट्टा संभालने लगी।
"लो सुम्मी तुम्हारी बुक्स आ गई । पर हाँ तुम्हारी काॅफी रह गई । दुसरी बना के लाता हूँ ।"
"नही सर बस  । पहले ही बहुत देर हो चुकी है। थैंक्यू सो मच फाॅर एवरी थिंग।"
कह कर सुम्मी तेजी से बाहर निकल गई ।
रवि के चेहरे पर तनाव, उलझन ,उदासी सब एक साथ उभर आए। सही गलत का मापदंड । समाज के नियम सब उसके दिल के टुकड़े कर रहे थे। हाथों में सिर थामे वो वहीं सोफे पर बैठा रहा।
सुम्मी को गए अभी पंद्रह मिनट ही हुए थे कि उसका काॅल आ गया।
"हाँ बोलो सुम्मी?"
"सर मेरी एक पायल कहीं गिर गई है। देखिए न प्लीज़ । कहीं वहीं सोफे के पास तो नही गिर गई जहां सोई हुई थी।"
"नही सुम्मी । मैं वहीं बैठा हूँ । यहां तो कुछ भी नही है। शायद रास्ते में कहीं गिर गई होगी ।"
"जी सर ।" सुम्मी का उदास सा स्वर आया और फोन कट गया।
मुस्कुराते हुए रवि ने जेब से सुम्मी की पायल निकाली। जब सुम्मी गहरी नींद सो रही थी रवि ने धीरे से एक पायल उसके पैर से निकाल ली थी। उसे गाल से छुआए बहुत देर रवि शरारती सी मुस्कान बिखेरता रहा। उम्र कोई भी हो। प्यार शरारत सीखा ही देता है।


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"सर आप शादी कर रहे हो?" सुम्मी की बड़ी बड़ी आँखों में आँसू भरे थे।
"हाँ सुम्मी । शादी तो करनी ही है। पैंतीस साल का हो गया हूँ फिर।"
"उससे क्या फर्क पड़ता है सर?"
"सुम्मी मुझे पता है तुम्हारे मन मे क्या है।" शांत स्वर में रवि ने कहा।
"फिर भी ??" सुम्मी बहुत हर्ट थी
"हाँ फिर भी। सुम्मी पंद्रह साल छोटी हो तुम मुझसे ।"
"तो ??"
"तो कुछ नही सुम्मी । समाज ,कायदा, परिवार सब देखना चाहिए । ये गुरु शिष्य की मर्यादा नही।"
"सर ये आदर्शवादी कहानियाँ आप अपने पास रखिए । सच कुछ और है । आप डरपोक है ।"
गुस्से से बिफरती रोती सुम्मी तेजी से बाहर निकल गई ।
और कसी मुठ्ठी में बंद पायल हथेली में नही रवि के दिल में ज़ख्म कर रही थी।


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बीस साल बीत चुके उस पल को..
रवि के बड़े-बड़े बच्चे हैं और सुम्मी के भी।
उस दिन के बाद उनका सामना कभी नही हुआ । रवि ने पहले ही काॅलेज छोड़ दिया था । और वो उसका आखिरी दिन था काॅलेज में जब सुम्मी गुस्से मे उसके पास आई थी।
पर आज भी रवि की जेब में वो पायल हमेशा रहती है जो उसने अपनी पत्नी के लाख ऐतराज़ के बाद भी कभी खुद से अलग नही की।
और सुम्मी ने भी उम्र भर बस एक ही पैर में पायल पहनी। सबके लगातार टोकने के बाद भी । अपना खाली पैर उसे उन उंगुलियों का अहसास कराता रहता जो धीरे से उसके पैर से पायल उतार रही थी और वो सब जानते हुए भी सोने का बहाना किए रही।

......कुछ प्रेम कहानियाँ अधूरी जरूर रह जाती हैं पर मरती कभी नही .....

Sunday 9 July 2017

मोगरे के फूल


"समझ भी आ रहा है क्या बोले चले जा रहे हो?"
"हाँ ...अच्छी तरह से । इतना प्यार करता हूँ पर तुम्हारी शिकायतें ही खत्म नही होती।"
"प्यार तो मैं भी बेईंतेहा करती हूँ न ..पर अपना हक माँगना शिकायत नही होता।"
"देखो सुम्मी  तुम से बहस करना मेरे बस का नही है। अगर तुम्हें लगता है मैं तुम्हें समय नही देता, तो लो आज से मैं अपनी किताब पर काम ही नही करता। भाड़ में गई किताब । "
"सुजल एक मिनट....।"
लगभग चिल्ला दी सुम्मी और बुरी तरह रो भी पड़ी ।
"मैं जिम्मेदार हूँ तुम्हारी किताब के डिले हो जाने के लिए  ? तुम मुझे ब्लेम कर रहे हो ? आई कांट बिलीव दिस।"
"तुम नही मैं जिम्मेदार हूँ ,कहीं भी टाईम नही दे पा रहा। पर अब मुझे कोई जल्दी नही । आती रहेगी चार पाँच महीने में ।" सुजल चिड़ कर बोला।
"और तुम्हें लगता है .. मैं ये चाहती हूँ सुजल? "
"तुम्ही बताओ फिर क्या करूँ सुम्मी ? जनवरी में आनी थी मार्च मे भी आसार नही दिख रहे। इतने प्यार से समझा रहा हूँ कि सुम्मी मुझे बहुत, बहुत ज्यादा स्ट्रेस हो रहा है । फिर भी तुम्हारी ब्लेमिंग बंद ही नही होती।"
"सब का कारण मैं हूँ न ? ठीक है मैं ही जा रही हूँ ।"
"अब फिर बात का बंतगड़ बना रही हो। तुम जानती हो, मैंने ऐसा न कहा, न चाहा।"
"नही , सब मेरी ही गलती है । मैं ही बुरी हूँ । पहले इतने साल थिसिस के लिए बाहर चले गए । फिर लौट के आए हो तो हर वक्त अपनी किताब पूरी करने में लगे रहते हो या अपनी जाॅब में बिजी। देर रात तक तुम्हारा इंतजार करती हूँ कि लैपटाॅप से नज़र हटे तो मेरी तरफ भी देख लो। कभी मेरा इंतजार समझ आता है या बस सारे सपने तुम्हारे ही हैं ? कसम है मुझे इस कमरे आई भी तो। पहले बुक पूरी कर लो अपनी । तब ही बात करना मुझसे। दुनिया बीवी की खूबसूरती की तारीफ करती मर रही है और पति को फुर्सत ही नही निगाह भर देख भी ले। "
कहते-कहते सुम्मी बुरी तरह से रो पड़ी और कमरे से बाहर निकल गया ।
सुजल ने अपना सिर थाम लिया दोनों हाथों में और गुस्से में लैपटाॅप भी बैड पर पटक दिया।
पूरी रात गुज़र गई आँखों-आँखों में । सुम्मी की भी और सुजल की भी।
सुबह घर मे अजीब-सा सन्नाटा पसरा था। दोनों अपने-अपने काम कर रहे थे , चेहरे पर तनाव लिए । पर तनाव झगड़े मे एक दूसरे को सही गलत साबित करने का नही था। तनाव था एक दूसरे से बिना बोले न रह पाने का। सही तो दोनों ही थे। सुम्मी की तड़प भी और सुजल की व्यस्तता भी ।
"ये क्या कर रही हो ?"  सुम्मी को पैंकिग करते देख सुजल बौखला गया।
"जा रही हूँ कुछ दिन के लिए । मेरी वजह से बुक डिले हो रही है न । तो अब तब आऊंगी जब बुक कम्पलीट हो जाऐगी।"
"अच्छा जी ...मायका तो तुम्हारा है नही जो मायके की धमकी दे कर चल दी। " मुस्कराते हुए सुजल बोला।
" मैंने मायके का नाम कब लिया। मैं सपना के घर जा रही हूँ ।"
अब तो सुजल की मुस्कान गायब। वो बुदबुदाया
"सपना सुम्मी की खास सहेली है । उसके यहां तो सचमुच सुम्मी कितने भी समय के लिए चली जाऐगी।"
"ऐ सुम्मी... सुन न।"  सुजल बेहद प्यार से बोला।
"क्या है ?"
"सच्ची जान मैं तुम पर नही झल्लाया न। खुद से इरीटेटिड था कि काम समय से खत्म नही कर पा रहा। और झुंझलाहट तुम पर उतार दी । माफ कर दे न यार।"
सुजल कान पकड़ते हुए बोला।
"तुम्हारी किताब मेरा भी सपना है न । और कितना चुभता हुआ बोला तुमने। स्ट्रेस का मतलब ये नही न कि सारी झुंझलाहट बीवी पर ही उतार दो । मुझे बस जाना है ।"
भरे गले से सुम्मी बोली ।
"सुम्मी जान... मत जा यार । हो गई न गलती । माफ कर दे प्लीज।"
अब तो सुजल की आवाज़ भी भर आई । उसे पता है सुम्मी इतनी स्ट्रोंग हैड है कि चली गई तो सचमुच महीनों नही आऐगी । और सच तो ये है सुजल सिहर जाता है सुम्मी से दूर रहने के ख्याल से।
सुम्मी आसपास रहती है  तो सुजल बुक पर काम कर पा रहा है और अगर चली गई तो सचमुच फिर तो बुक गई भाड़ में ।
"सुम्मी... मैं हाथ भी नही लगाऊंगा बुक को अगर तुम चली गई तो।"
"तुम मुझे ब्लैकमेल कर रहे हो ?"
"तुम जो भी समझो।"
सुम्मी को पता है सुजल भी कम जिद्दी तो है नही। गुस्से में अटैची पटक कर वो रसोई में चली गई ।
सुजल ने भी सारा दिन चुप रहने में ही भलाई समझी। रोज की तरह सुम्मी सुजल के सब काम करती रही पर मुंह से एक शब्द नही बोली।
सुजल अंदर ही अंदर मुस्कुराता रहा कि चलो छोड़कर तो नही गई । उसको अहसास भी था अपनी गलती का सो बाजार से चुपचाप मोगरे के फूलों के गजरें ले आया था सुम्मी को रात को खुश करने के लिए। सुम्मी को बेहद पसन्द  जो है मोगरे की खुशबू ।
रात देर तक वो सुम्मी का कमरे में इंतजार करता रहा उसे लगा सुम्मी काम मे लगी है पर जब ग्यारह बजे तक भी सुम्मी कमरे मे नही आई तो वो उठ कर बाहर देखने आया।
सुम्मी तो दूसरे कमरे में सो भी गई थी। हैरानी से सुजल खड़ा देखता रहा। ये इतने सालों में पहली बार था जब सुम्मी ने उसे यूँ नकार दिया हो ।
एक पल के लिए सुजल अतीत में खो गया .... कैसे
पूरा काॅलेज सुम्मी के व्यवहार और सुंदरता का दीवाना था पर सुम्मी....सुम्मी,  सुजल की इस कदर दीवानी  थी कि सुजल को भी अभिमान हो चला था खुद पर। उन दिनों किसी राजा से कम नही समझता था वो खुद को कि जिसकी दुनिया दीवानी है वो उसके प्यार मे पागल है ।
और शायद ये ही अभिमान कहीं मन के कोने में चाहे-अनचाहे बस गया। सुम्मी से शादी तो कर ली और प्यार भी खूब करता है बस जताने में उससे चूक हो जाती है। आज जब सुम्मी उसे यूँ नकार कर सो गई तो उसे भी महसूस हुआ कि सुम्मी को कैसा लगता होगा जब वो उसको समय नही देता वो प्यार वो अहसास नही देता जो वो डिज़र्व करती है। और यूँ थक कर,  छोड़ कर उसे , सो जाता है ।
सुजल वहीं सुम्मी के पास बैठ कर उसे निहारने लगा। "सुम्मी तुम सच में बेईंतेहा खूबसूरत हो जान। मन से भी तन से भी। ये तो मेरी ही मति मारी जाती है । माफ कर दे न यार  । "
हाथ में पकड़े मोगरे के फूलों का गजरा उसने सुम्मी के सिरहाने रख दिया।  रात के जाने कितने पहर बीत गए उसे यूँ बैठे-बैठे । आँखें नींद से भारी होने लगी । धीरे-धीरे वो भी वहीं बैड के कोने पर अधलेटा-सा हो गया। कमरे में अब तक मोगरे के फूलों की महक इस कदर फैल चुकी थी कि सुम्मी की भी नींद खुल गई ।
वो हैरानी से कभी फूलों कभी सुजल को देखने लगी।
मोगरे के फूल देख उसका सारा गुस्सा पल मे गायब हो गया।
सुम्मी उठी कि सुजल को ठीक से लेटा दे। सुम्मी के हाथ लगाते ही सुजल भी चौंक कर उठ गया।
गजरें की तरफ देख कर सुम्मी मुस्काई और आँखों-आँखों में मुस्कुराते हुए सुजल से पूछा
"ये क्या?"
सुजल ने भी आँखों से ही जवाब दिया मुस्कुराते हुए
"मान जा न।"
दोनों खिलखिला कर हंस पड़े। रात भर कमरा मोगरे के फूलों की और सुम्मी-सुजल के प्यार की महक से ....महकता रहा। और दोनों तरफ से साॅरी और लव यू का दौर चलता रहा।
********
थोड़ा झगड़ा भी जरूरी है मोहब्बत की गहराई के लिए ..
सहमत है न आप ???????

Sunday 2 July 2017

स्पेशल केस

"रोहिततततत!!!!"
"ओहो क्या हुआ क्यों चिल्ला रही हो?"
"फिर गीला तौलिया बैड पर पड़ा है तुम्हारा।"
"हाँ तो,अभी उठा ही रहा था ।"
"उठा ही रहा था, हाँ ,जैसे रोज ही उठा देते हो। एक तो बारिश के मौसम में वैसे ही कपड़े नही सूखते ऊपर से तुम्हारे नाटक। कहाँ शादी हो गई मेरी । "
"नही उठाता ,तो रोज टोकती ही क्यों हो, खुद ही उठा लिया करो । और लो बताओ एक तौलिए के पीछे हमारी सारी खूबियां फेल?"
"हाँ बड़ी खूबियां है न । स्वाहा । दिमाग खराब कर रखा  है मेरा ।"
बड़बड़ाती सुम्मी कमरे से बाहर निकल गई ।
"दिमाग है भी ?"
रोहित हंसते हुए सीटी बजाता शीशे के आगे खड़ा हो गया बाल बनाने । फिर अलमारी खोल कर दो मिनट सोचता रहा और फिर चिल्लाया ....
"ओ सुम्मी !!!!"
"क्या है ?"
"यार मैंचिग शर्ट निकाल दे।"
"हे भगवान कुछ सिखाया भी है तुम्हारी माँ ने?"
"देख सुम्मी ...अब सुबह सुबह माँ को बीच में मत ला।"
"अच्छा..अच्छा.. ठीक है.. सॉरी । पर मेरे हाथ बेसन में हो रखे है । नाश्ते के लिए तुम्हारे फेवरट पकौड़े बना रही हूँ । मैं नही आ सकती । खुद निकाल लो।"
"निकाल दे न यार।"
"कहा न मैं नही आ सकती। अपने काम खुद करने की आदत डालो। हर काम के लिए मुझे आवाज़ लगाते हो। तंग कर रखा है।"
"अच्छा ठीक है मत आ। मुझे जो समझ आऐगा वो ही पहन लेता हूँ ।" अब रोहित ने बड़बड़ाते हुए शर्ट निकाली और पहन ली । अब टाई ...
"ओ सुम्मी !!!"
"अब क्या है??" सुम्मी झल्ला कर बोली
"कुछ नही । खुद ही कर लूँगा। तुमसे तो कुछ कहना ही बेकार है । सुबह से पता नही कौन से करेले चबा रखे है। ऐ सुनो !! वैसे तुम्हारी डेट्स तो नही आ रही जो चिड़चिड़ ही बंद नही हो रही ।"रोहित शरारत भरे स्वर में बोला
"फालतू बकवास की न तो डबल मिर्च डाल दूँगी पकौड़ो में " सुम्मी और चिड़ गई ।
तभी रोहित तैयार हो कर डाईनिंग पर आ कर बैठ गया।
"लाओ भई गरमागरम पकौड़े। बारिश के मौसम में पकौड़े खाने का मजा ही कुछ और है । "
"हे भगवान!!!" सुम्मी चिल्लाई
रोहित झटके से घबरा कर खड़ा हो गया
"क्या हुआ सुम्मी ?"
"अरे ये क्या वाहियात मैंचिग बनाई है?"
"इसलिए चिल्लाई तुम ?"रोहित गुस्से से बोला
"और क्या। आई कांट बिलीव कोई ऐसा कोम्बिनेशन भी पहन सकता है। पथैटिक। बदलो फटाफट। रूको मैं ही निकाल कर लाती हूँ ।"
"अरे पहले नाश्ता तो दे दे। "
"रूको तो एक मिनट ही तो लगेगा । मैं निकाल रही हूँ तुम फटाफट बदल लेना। फिर नाश्ता लगाती हूँ ।"
कहते हुए सुम्मी शर्ट लेने अंदर चली गई ।
और रोहित बेचारा शर्ट के बटन खोलते हुए सोच रहा है "मैं ही स्पेशल केस हूँ या सब पतियों की ये ही हालत है।"

Thursday 29 June 2017

मेरी साईड


"अरे!!!! इस साईड मैं सोऊंगी ।"

"क्यों भई , तुम्हारा नाम लिखा है इस साईड?"

"हाँ !! लिखा है।"

"दिखाओ ज़रा कहाँ ?"

"क्या यार मत तंग करो न ।तुम्हें पता तो है न मैं हमेशा इसी साईड सोती हूँ , मुझे दूसरी तरफ नींद नही आऐगी ।"

"स्वीटहार्ट लैपटाॅप पर काम करना है बहुत । और चार्जिंग कम है । स्टडी टेबल पर बैठने की हिम्मत नही। पैर दुख रहे है। आज एडजस्ट कर लो न।"

"न... मैं तो इसी साईड सोऊंगी । जब तुम्हारा काम खत्म हो जाऐगा तब साईड चेंज कर लेंगे।"

"अजीब सनकी हो तुम । हीरे जड़े है इस साईड में क्या ?"

"हीरे नही जड़े ।पर मेरा हीरा इस साईड से पूरी रात दिखता है । वो भी खूब चमकता।"

"मतलब?"

"मतलब ये मेरी जान। मुझे राईट करवट सोने की आदत है । रात जितनी बार नींद हल्की सी भी खुलती है , तुम्हारा चेहरा दिखता है और फिर से सुकून भरी नींद आ जाती है ।ऊधर सोऊंगी तो दीवार दिखेगी । और इस घर मे जिस रात तुम न दिखो वो रात जिंदगी की आखिरी रात हो बस।"

रोहित एक टक सुम्मी को निहारने लगा

"अब ऐसे क्या देख रहे हो?"

"सोच रहा हूँ ।"

"क्या ?"

"काम करूँ कि तुझे प्यार करूँ ।"

और दोनों खिलखिला के हंस दिए । और लैपटाॅप बिना इस्तेमाल हुए चार्ज होता रहा।




Tuesday 27 June 2017

फिक्र


                                 

"तुम्हें मेरी कोई परवाह नही। शादी के बाद कुछ साल तो तुम्हें सब याद रहता था जन्मदिन सालगिरह खास मुलाकातों के सब दिन अब इतनी बार  याद दिलाती हूँ फिर भी भूल जाते हो । अब तुम मुझे प्यार नही करते । तुम्हें कोई फिक्र नही रही मेरी।" सुम्मी रोते हुए बस बोलती जा रही थी । 
रोहित कुछ कहने की कोशिश करता तो सुम्मी और बिगड़ जाती। आज शादी की सालगिरह पर दोनों सुम्मी के कहने पर उसी मंदिर आए थे जहाँ शादी से पहले अक्सर जाते थे। पर वहाँ सुम्मी पुराने दिनों को याद करते हुए इतनी भावुक हो गई कि वापसी में बस लगातार झगड़े जा रही थी। वो सड़क की तरफ थी भीड़ का वक्त था तेजी से गाड़ियाँ ट्रक टैम्पों गुजर रहे थे और वो गुस्से में रोती अपनी ही धुन में तेजी से चल रही थी । रोहित दुगुनी तेजी से कदम बढ़ाता उसके पास पहुँचा और उसके सड़क के अंदर की साईड कर उसका हाथ कस के पकड़े सड़क की साईड खुद हो गया। तमतमाई सुम्मी ने उसे घुर के देखा तो रोहित मासूम सा चेहरा बना के बोला
 "कैरी ऑन डियर । तुम गुस्सा करती रहो । वो गाड़ियाँ तेजी से आ रही है न।"
सुम्मी ने होंठ खोले कुछ कहने को पर फिर चुप रह गई ।
रोहित ने आॅटो रोका और सुम्मी को अंदर की तरफ बैठने को कहा।घर के बाहर आॅटो से उतरते ही शर्मा जी का कुत्ता भौंकता हुआ सुम्मी की तरफ लपका। पलक झपकते ही रोहित सुम्मी के आगे खड़ा हो गया। रोहित जानता है सुम्मी को कुत्तों से बेहद डर लगता है । घर में घुसते ही रोहित ने सुम्मी को पानी दिया उसकी साँसें घबराहट से अब भी अस्त व्यस्त थी । तभी आॅफिस से फोन आ गया। रोहित बाहर जाते हुए बोला 
"अभी आता हूँ घंटे तक ।" 
सुम्मी गुस्से से फिर चिल्लाना चाहती थी "तुम्हें मेरी फिक्र नहीं"
 पर.........पर झूठ बात पर कैसे लड़े। फिर मुस्कुरा के बोली "समय तो नही देते न पर, घर आने दो जरा फिर बताती हूँ" और गुनगुनाते हुए घर के काम में लग गई ।😊😊😀


मेरी खाल की उल्टी तरफ से गिद्ध चुग रहा है मेरे होने के सहारे पुख्ता सबूत । धीरे-धीरे गिद्ध की चोंच अपने निशान छोड़ती जा रही है । भीतर के उन...