"समझ भी आ रहा है क्या बोले चले जा रहे हो?"
"हाँ ...अच्छी तरह से । इतना प्यार करता हूँ पर तुम्हारी शिकायतें ही खत्म नही होती।"
"प्यार तो मैं भी बेईंतेहा करती हूँ न ..पर अपना हक माँगना शिकायत नही होता।"
"देखो सुम्मी तुम से बहस करना मेरे बस का नही है। अगर तुम्हें लगता है मैं तुम्हें समय नही देता, तो लो आज से मैं अपनी किताब पर काम ही नही करता। भाड़ में गई किताब । "
"सुजल एक मिनट....।"
लगभग चिल्ला दी सुम्मी और बुरी तरह रो भी पड़ी ।
"मैं जिम्मेदार हूँ तुम्हारी किताब के डिले हो जाने के लिए ? तुम मुझे ब्लेम कर रहे हो ? आई कांट बिलीव दिस।"
"तुम नही मैं जिम्मेदार हूँ ,कहीं भी टाईम नही दे पा रहा। पर अब मुझे कोई जल्दी नही । आती रहेगी चार पाँच महीने में ।" सुजल चिड़ कर बोला।
"और तुम्हें लगता है .. मैं ये चाहती हूँ सुजल? "
"तुम्ही बताओ फिर क्या करूँ सुम्मी ? जनवरी में आनी थी मार्च मे भी आसार नही दिख रहे। इतने प्यार से समझा रहा हूँ कि सुम्मी मुझे बहुत, बहुत ज्यादा स्ट्रेस हो रहा है । फिर भी तुम्हारी ब्लेमिंग बंद ही नही होती।"
"सब का कारण मैं हूँ न ? ठीक है मैं ही जा रही हूँ ।"
"अब फिर बात का बंतगड़ बना रही हो। तुम जानती हो, मैंने ऐसा न कहा, न चाहा।"
"नही , सब मेरी ही गलती है । मैं ही बुरी हूँ । पहले इतने साल थिसिस के लिए बाहर चले गए । फिर लौट के आए हो तो हर वक्त अपनी किताब पूरी करने में लगे रहते हो या अपनी जाॅब में बिजी। देर रात तक तुम्हारा इंतजार करती हूँ कि लैपटाॅप से नज़र हटे तो मेरी तरफ भी देख लो। कभी मेरा इंतजार समझ आता है या बस सारे सपने तुम्हारे ही हैं ? कसम है मुझे इस कमरे आई भी तो। पहले बुक पूरी कर लो अपनी । तब ही बात करना मुझसे। दुनिया बीवी की खूबसूरती की तारीफ करती मर रही है और पति को फुर्सत ही नही निगाह भर देख भी ले। "
कहते-कहते सुम्मी बुरी तरह से रो पड़ी और कमरे से बाहर निकल गया ।
सुजल ने अपना सिर थाम लिया दोनों हाथों में और गुस्से में लैपटाॅप भी बैड पर पटक दिया।
पूरी रात गुज़र गई आँखों-आँखों में । सुम्मी की भी और सुजल की भी।
सुबह घर मे अजीब-सा सन्नाटा पसरा था। दोनों अपने-अपने काम कर रहे थे , चेहरे पर तनाव लिए । पर तनाव झगड़े मे एक दूसरे को सही गलत साबित करने का नही था। तनाव था एक दूसरे से बिना बोले न रह पाने का। सही तो दोनों ही थे। सुम्मी की तड़प भी और सुजल की व्यस्तता भी ।
"ये क्या कर रही हो ?" सुम्मी को पैंकिग करते देख सुजल बौखला गया।
"जा रही हूँ कुछ दिन के लिए । मेरी वजह से बुक डिले हो रही है न । तो अब तब आऊंगी जब बुक कम्पलीट हो जाऐगी।"
"अच्छा जी ...मायका तो तुम्हारा है नही जो मायके की धमकी दे कर चल दी। " मुस्कराते हुए सुजल बोला।
" मैंने मायके का नाम कब लिया। मैं सपना के घर जा रही हूँ ।"
अब तो सुजल की मुस्कान गायब। वो बुदबुदाया
"सपना सुम्मी की खास सहेली है । उसके यहां तो सचमुच सुम्मी कितने भी समय के लिए चली जाऐगी।"
"ऐ सुम्मी... सुन न।" सुजल बेहद प्यार से बोला।
"क्या है ?"
"सच्ची जान मैं तुम पर नही झल्लाया न। खुद से इरीटेटिड था कि काम समय से खत्म नही कर पा रहा। और झुंझलाहट तुम पर उतार दी । माफ कर दे न यार।"
सुजल कान पकड़ते हुए बोला।
"तुम्हारी किताब मेरा भी सपना है न । और कितना चुभता हुआ बोला तुमने। स्ट्रेस का मतलब ये नही न कि सारी झुंझलाहट बीवी पर ही उतार दो । मुझे बस जाना है ।"
भरे गले से सुम्मी बोली ।
"सुम्मी जान... मत जा यार । हो गई न गलती । माफ कर दे प्लीज।"
अब तो सुजल की आवाज़ भी भर आई । उसे पता है सुम्मी इतनी स्ट्रोंग हैड है कि चली गई तो सचमुच महीनों नही आऐगी । और सच तो ये है सुजल सिहर जाता है सुम्मी से दूर रहने के ख्याल से।
सुम्मी आसपास रहती है तो सुजल बुक पर काम कर पा रहा है और अगर चली गई तो सचमुच फिर तो बुक गई भाड़ में ।
"सुम्मी... मैं हाथ भी नही लगाऊंगा बुक को अगर तुम चली गई तो।"
"तुम मुझे ब्लैकमेल कर रहे हो ?"
"तुम जो भी समझो।"
सुम्मी को पता है सुजल भी कम जिद्दी तो है नही। गुस्से में अटैची पटक कर वो रसोई में चली गई ।
सुजल ने भी सारा दिन चुप रहने में ही भलाई समझी। रोज की तरह सुम्मी सुजल के सब काम करती रही पर मुंह से एक शब्द नही बोली।
सुजल अंदर ही अंदर मुस्कुराता रहा कि चलो छोड़कर तो नही गई । उसको अहसास भी था अपनी गलती का सो बाजार से चुपचाप मोगरे के फूलों के गजरें ले आया था सुम्मी को रात को खुश करने के लिए। सुम्मी को बेहद पसन्द जो है मोगरे की खुशबू ।
रात देर तक वो सुम्मी का कमरे में इंतजार करता रहा उसे लगा सुम्मी काम मे लगी है पर जब ग्यारह बजे तक भी सुम्मी कमरे मे नही आई तो वो उठ कर बाहर देखने आया।
सुम्मी तो दूसरे कमरे में सो भी गई थी। हैरानी से सुजल खड़ा देखता रहा। ये इतने सालों में पहली बार था जब सुम्मी ने उसे यूँ नकार दिया हो ।
एक पल के लिए सुजल अतीत में खो गया .... कैसे
पूरा काॅलेज सुम्मी के व्यवहार और सुंदरता का दीवाना था पर सुम्मी....सुम्मी, सुजल की इस कदर दीवानी थी कि सुजल को भी अभिमान हो चला था खुद पर। उन दिनों किसी राजा से कम नही समझता था वो खुद को कि जिसकी दुनिया दीवानी है वो उसके प्यार मे पागल है ।
और शायद ये ही अभिमान कहीं मन के कोने में चाहे-अनचाहे बस गया। सुम्मी से शादी तो कर ली और प्यार भी खूब करता है बस जताने में उससे चूक हो जाती है। आज जब सुम्मी उसे यूँ नकार कर सो गई तो उसे भी महसूस हुआ कि सुम्मी को कैसा लगता होगा जब वो उसको समय नही देता वो प्यार वो अहसास नही देता जो वो डिज़र्व करती है। और यूँ थक कर, छोड़ कर उसे , सो जाता है ।
सुजल वहीं सुम्मी के पास बैठ कर उसे निहारने लगा। "सुम्मी तुम सच में बेईंतेहा खूबसूरत हो जान। मन से भी तन से भी। ये तो मेरी ही मति मारी जाती है । माफ कर दे न यार । "
हाथ में पकड़े मोगरे के फूलों का गजरा उसने सुम्मी के सिरहाने रख दिया। रात के जाने कितने पहर बीत गए उसे यूँ बैठे-बैठे । आँखें नींद से भारी होने लगी । धीरे-धीरे वो भी वहीं बैड के कोने पर अधलेटा-सा हो गया। कमरे में अब तक मोगरे के फूलों की महक इस कदर फैल चुकी थी कि सुम्मी की भी नींद खुल गई ।
वो हैरानी से कभी फूलों कभी सुजल को देखने लगी।
मोगरे के फूल देख उसका सारा गुस्सा पल मे गायब हो गया।
सुम्मी उठी कि सुजल को ठीक से लेटा दे। सुम्मी के हाथ लगाते ही सुजल भी चौंक कर उठ गया।
गजरें की तरफ देख कर सुम्मी मुस्काई और आँखों-आँखों में मुस्कुराते हुए सुजल से पूछा
"ये क्या?"
सुजल ने भी आँखों से ही जवाब दिया मुस्कुराते हुए
"मान जा न।"
दोनों खिलखिला कर हंस पड़े। रात भर कमरा मोगरे के फूलों की और सुम्मी-सुजल के प्यार की महक से ....महकता रहा। और दोनों तरफ से साॅरी और लव यू का दौर चलता रहा।
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"हाँ ...अच्छी तरह से । इतना प्यार करता हूँ पर तुम्हारी शिकायतें ही खत्म नही होती।"
"प्यार तो मैं भी बेईंतेहा करती हूँ न ..पर अपना हक माँगना शिकायत नही होता।"
"देखो सुम्मी तुम से बहस करना मेरे बस का नही है। अगर तुम्हें लगता है मैं तुम्हें समय नही देता, तो लो आज से मैं अपनी किताब पर काम ही नही करता। भाड़ में गई किताब । "
"सुजल एक मिनट....।"
लगभग चिल्ला दी सुम्मी और बुरी तरह रो भी पड़ी ।
"मैं जिम्मेदार हूँ तुम्हारी किताब के डिले हो जाने के लिए ? तुम मुझे ब्लेम कर रहे हो ? आई कांट बिलीव दिस।"
"तुम नही मैं जिम्मेदार हूँ ,कहीं भी टाईम नही दे पा रहा। पर अब मुझे कोई जल्दी नही । आती रहेगी चार पाँच महीने में ।" सुजल चिड़ कर बोला।
"और तुम्हें लगता है .. मैं ये चाहती हूँ सुजल? "
"तुम्ही बताओ फिर क्या करूँ सुम्मी ? जनवरी में आनी थी मार्च मे भी आसार नही दिख रहे। इतने प्यार से समझा रहा हूँ कि सुम्मी मुझे बहुत, बहुत ज्यादा स्ट्रेस हो रहा है । फिर भी तुम्हारी ब्लेमिंग बंद ही नही होती।"
"सब का कारण मैं हूँ न ? ठीक है मैं ही जा रही हूँ ।"
"अब फिर बात का बंतगड़ बना रही हो। तुम जानती हो, मैंने ऐसा न कहा, न चाहा।"
"नही , सब मेरी ही गलती है । मैं ही बुरी हूँ । पहले इतने साल थिसिस के लिए बाहर चले गए । फिर लौट के आए हो तो हर वक्त अपनी किताब पूरी करने में लगे रहते हो या अपनी जाॅब में बिजी। देर रात तक तुम्हारा इंतजार करती हूँ कि लैपटाॅप से नज़र हटे तो मेरी तरफ भी देख लो। कभी मेरा इंतजार समझ आता है या बस सारे सपने तुम्हारे ही हैं ? कसम है मुझे इस कमरे आई भी तो। पहले बुक पूरी कर लो अपनी । तब ही बात करना मुझसे। दुनिया बीवी की खूबसूरती की तारीफ करती मर रही है और पति को फुर्सत ही नही निगाह भर देख भी ले। "
कहते-कहते सुम्मी बुरी तरह से रो पड़ी और कमरे से बाहर निकल गया ।
सुजल ने अपना सिर थाम लिया दोनों हाथों में और गुस्से में लैपटाॅप भी बैड पर पटक दिया।
पूरी रात गुज़र गई आँखों-आँखों में । सुम्मी की भी और सुजल की भी।
सुबह घर मे अजीब-सा सन्नाटा पसरा था। दोनों अपने-अपने काम कर रहे थे , चेहरे पर तनाव लिए । पर तनाव झगड़े मे एक दूसरे को सही गलत साबित करने का नही था। तनाव था एक दूसरे से बिना बोले न रह पाने का। सही तो दोनों ही थे। सुम्मी की तड़प भी और सुजल की व्यस्तता भी ।
"ये क्या कर रही हो ?" सुम्मी को पैंकिग करते देख सुजल बौखला गया।
"जा रही हूँ कुछ दिन के लिए । मेरी वजह से बुक डिले हो रही है न । तो अब तब आऊंगी जब बुक कम्पलीट हो जाऐगी।"
"अच्छा जी ...मायका तो तुम्हारा है नही जो मायके की धमकी दे कर चल दी। " मुस्कराते हुए सुजल बोला।
" मैंने मायके का नाम कब लिया। मैं सपना के घर जा रही हूँ ।"
अब तो सुजल की मुस्कान गायब। वो बुदबुदाया
"सपना सुम्मी की खास सहेली है । उसके यहां तो सचमुच सुम्मी कितने भी समय के लिए चली जाऐगी।"
"ऐ सुम्मी... सुन न।" सुजल बेहद प्यार से बोला।
"क्या है ?"
"सच्ची जान मैं तुम पर नही झल्लाया न। खुद से इरीटेटिड था कि काम समय से खत्म नही कर पा रहा। और झुंझलाहट तुम पर उतार दी । माफ कर दे न यार।"
सुजल कान पकड़ते हुए बोला।
"तुम्हारी किताब मेरा भी सपना है न । और कितना चुभता हुआ बोला तुमने। स्ट्रेस का मतलब ये नही न कि सारी झुंझलाहट बीवी पर ही उतार दो । मुझे बस जाना है ।"
भरे गले से सुम्मी बोली ।
"सुम्मी जान... मत जा यार । हो गई न गलती । माफ कर दे प्लीज।"
अब तो सुजल की आवाज़ भी भर आई । उसे पता है सुम्मी इतनी स्ट्रोंग हैड है कि चली गई तो सचमुच महीनों नही आऐगी । और सच तो ये है सुजल सिहर जाता है सुम्मी से दूर रहने के ख्याल से।
सुम्मी आसपास रहती है तो सुजल बुक पर काम कर पा रहा है और अगर चली गई तो सचमुच फिर तो बुक गई भाड़ में ।
"सुम्मी... मैं हाथ भी नही लगाऊंगा बुक को अगर तुम चली गई तो।"
"तुम मुझे ब्लैकमेल कर रहे हो ?"
"तुम जो भी समझो।"
सुम्मी को पता है सुजल भी कम जिद्दी तो है नही। गुस्से में अटैची पटक कर वो रसोई में चली गई ।
सुजल ने भी सारा दिन चुप रहने में ही भलाई समझी। रोज की तरह सुम्मी सुजल के सब काम करती रही पर मुंह से एक शब्द नही बोली।
सुजल अंदर ही अंदर मुस्कुराता रहा कि चलो छोड़कर तो नही गई । उसको अहसास भी था अपनी गलती का सो बाजार से चुपचाप मोगरे के फूलों के गजरें ले आया था सुम्मी को रात को खुश करने के लिए। सुम्मी को बेहद पसन्द जो है मोगरे की खुशबू ।
रात देर तक वो सुम्मी का कमरे में इंतजार करता रहा उसे लगा सुम्मी काम मे लगी है पर जब ग्यारह बजे तक भी सुम्मी कमरे मे नही आई तो वो उठ कर बाहर देखने आया।
सुम्मी तो दूसरे कमरे में सो भी गई थी। हैरानी से सुजल खड़ा देखता रहा। ये इतने सालों में पहली बार था जब सुम्मी ने उसे यूँ नकार दिया हो ।
एक पल के लिए सुजल अतीत में खो गया .... कैसे
पूरा काॅलेज सुम्मी के व्यवहार और सुंदरता का दीवाना था पर सुम्मी....सुम्मी, सुजल की इस कदर दीवानी थी कि सुजल को भी अभिमान हो चला था खुद पर। उन दिनों किसी राजा से कम नही समझता था वो खुद को कि जिसकी दुनिया दीवानी है वो उसके प्यार मे पागल है ।
और शायद ये ही अभिमान कहीं मन के कोने में चाहे-अनचाहे बस गया। सुम्मी से शादी तो कर ली और प्यार भी खूब करता है बस जताने में उससे चूक हो जाती है। आज जब सुम्मी उसे यूँ नकार कर सो गई तो उसे भी महसूस हुआ कि सुम्मी को कैसा लगता होगा जब वो उसको समय नही देता वो प्यार वो अहसास नही देता जो वो डिज़र्व करती है। और यूँ थक कर, छोड़ कर उसे , सो जाता है ।
सुजल वहीं सुम्मी के पास बैठ कर उसे निहारने लगा। "सुम्मी तुम सच में बेईंतेहा खूबसूरत हो जान। मन से भी तन से भी। ये तो मेरी ही मति मारी जाती है । माफ कर दे न यार । "
हाथ में पकड़े मोगरे के फूलों का गजरा उसने सुम्मी के सिरहाने रख दिया। रात के जाने कितने पहर बीत गए उसे यूँ बैठे-बैठे । आँखें नींद से भारी होने लगी । धीरे-धीरे वो भी वहीं बैड के कोने पर अधलेटा-सा हो गया। कमरे में अब तक मोगरे के फूलों की महक इस कदर फैल चुकी थी कि सुम्मी की भी नींद खुल गई ।
वो हैरानी से कभी फूलों कभी सुजल को देखने लगी।
मोगरे के फूल देख उसका सारा गुस्सा पल मे गायब हो गया।
सुम्मी उठी कि सुजल को ठीक से लेटा दे। सुम्मी के हाथ लगाते ही सुजल भी चौंक कर उठ गया।
गजरें की तरफ देख कर सुम्मी मुस्काई और आँखों-आँखों में मुस्कुराते हुए सुजल से पूछा
"ये क्या?"
सुजल ने भी आँखों से ही जवाब दिया मुस्कुराते हुए
"मान जा न।"
दोनों खिलखिला कर हंस पड़े। रात भर कमरा मोगरे के फूलों की और सुम्मी-सुजल के प्यार की महक से ....महकता रहा। और दोनों तरफ से साॅरी और लव यू का दौर चलता रहा।
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थोड़ा झगड़ा भी जरूरी है मोहब्बत की गहराई के लिए ..
सहमत है न आप ???????
सहमत है न आप ???????
Sundar
ReplyDeleteThanks di 😘
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