Saturday, 16 September 2017

पर ऐसा होता नही न दोस्त ...


ये वक्त बहुत बुरा है
इसे गुज़र जाना चाहिए ...
वो लोग अच्छे नही है
उन्हें भूल जाना चाहिए ...

ऐसा सोचते हुए वो
अक्सर रात को
सिरहाने के पास करीने से बिछी चादर पर कुछ शब्द अपनी उंगुली से बहुत सफाई से लिखती

एक बेहद गहरी उदासी भरी साँस ले कर
अपनी हथेली को बहुत गहरे तक चादर पर दबा कर वो झटके से गिरा देती उन शब्दों को बैड से नीचे
महसूस करने लगती एक अनकहा सा सुकून जैसे ज़हन पे रेगती चींटीयों को झटक दिया हो कहीं दूर ..
और अब बेचैनी कुछ कम हो जाऐगी और नींद आ जाऐगी।

वो सोने ही लगी थे कि अतीत से निकल कर कुछ मकड़ियां सरकने लगती है अंदर कहीं मन के तहखाने में । बुनने लगती है बहुत तेज़ी से जाला नींद को उसमें जकड़ लेने का।
वो तड़प कर एक झटके से करवट लेती जैसे तयखाने में सरकती मकडियों का बैलंस बिगड़ जाऐगा ...जिससे बंद हो जाएगा उनका जाला बुनना।

वो सोना चाहती है पर सो नही पाती

उसने बस इतना कहा था उससे एक बार
"हो सके तो अपने ज़हन की बाँहें खुली रखना कि किसी रोज़ जब मेरे सुकून का मन घबराऐगा तो चली आऊंगी तुम्हारी रूह के सीने पर सिर रखने।
तुम अपने अहसास की उंगुलियाँ से मेरे दर्द के गेसुं  संवार  देना और मैं रख लुंगी वो अनकहे बोल तुम्हारे सहेज के उम्र के आड़े वक्त के लिए ।"

पर वो प्रेम रेत के टीलों पर हवा से बनी आकृतियों सा था जो पल पल अपना स्वरूप बदलता रहा।
वो रेत के टीलों से नीचे फिसलने लगती है और उसे धीरे-धीरे नींद भी आ ही जाती है।

जिंदगी किसी एक के साथ खत्म हो सकती तो ???

पर ऐसा होता नही न दोस्त ...

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