Wednesday, 15 March 2023
डायरी के दुःख
मैं कितना कुछ पढ़ती हूँ.. कितनी सुंदर पंक्तियाँ ज़ेहन में विस्फोट की तरह असर करती हैं और गहरे दिल में उतर जाती हैं। मैं डायरी उठाती हूँ और कलम भी कि इनको नोट कर लेती हूँ। फिर सोचती हूँ इस डायरी में बहुत सारी अजीब कुरूप बातें भी हैं, इसमें इन सुंदर बातों को.. प्रिय लेखकों की बातों को, क्या ही लिखना! किसी दूसरी सुंदर डायरी में लिखती हूँ।
फिर बहुत सारा वक्त उस सुंदर डायरी को ढूँढने में गंवा देती हूँ और जमा की हुई डायरियों में से मुझे कोई भी डायरी पसंद नहीं आती।
इस नापसंद आने के यूँ तो हज़ार कारण हो सकते हैं पर मैं यह जानती हूँ कि जीवन की बेतरतीबी ने मेरे भीतर कहीं यह भर दिया है कि दर्ज़ करने से भी दरअसल हूबहू वैसा ही दर्ज़ कुछ नहीं होता। दर्ज़ भी उतना और वैसा ही होता है जो भोगते हुए भीतर की परतों को छीज देता है और छूट जाता है उसकी धारियों में।
पर बावजूद इसके यह पंक्ति यहाँ टाँग रही हूँ
' यह अजीब बात है, जब तुम दो अलग-अलग दुखों के लिए रोने लगते हो और पता नहीं चलता, कौन से आंसू कौन से दुख के हैं!'
निर्मल वर्मा
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देर रात बिल्लियों के चीखने की आवाज़ आती है। पर मेरी नींद उनके चीखने से नहीं खुलती। मेरी नींद खुलती है उस झटके से जो नींद में गिरगिट के मेरे सीने पर कूद जाने से महसूस हुआ। बिल्लियों के चीखने की आवाज़ बाद में सुनाई देती है। गिरगिट एक ठहरी हुई परिस्थिति है।
मैं सोचती हूँ कि मेरे पास छूटे हुए लोगों की फ़ेहरिस्त होनी चाहिए थी पर नहीं है।
जो दिल से निकला
वह फिर निकल ही गया।
अजीब है यह दिल भी कि फिर कभी मुलाकात हो और उसे ज़ार ज़ार रोता देखे तो उसको रोता देख, रोता तो है..
पर उतनी ही देर, जितनी देर उसे रोता देखे..
कि बात में बात यूँ भी है
सच्चाई की कहानी के कम बड़े किरदार होते हैं और पत्थर हो जाते है वो दिल , जो चोट खाए बेशुमार होते हैं।
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सुम्मी
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